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चाय की चुस्कियां और हमारा सफर

चाय की चुस्कियां और हमारा सफर


कल मैं जैसे ही ट्रेन में बैठा एक बुजुर्ग दम्पत्ति ट्रेन में चड़े तो आंटी तो सीट के पास आ गई पर अंकल सारा सामान लेकर गेट से अन्दर आ रहे थे | तो शायद किसी से टकरा गए उसने कुछ कहा होगा , तो उन्होंने उसे सॉरी कहा |तभी आंटी वही से खडी खडी बोली तुम्हे सॉरी कहने की क्या जरूरत है गलती तुम्हारी नहीं है | दोनों की साँसे फूली हुई थी | समझा जा सकता था की वो कैसे सामान के साथ कैसे चढ़े होंगे | बी पी बढ़ा हुआ था | मैं और प्रवीन जी पहले से नीचे वाले बर्थ पर बैठे थे | हमारा दोनों को बीच का बर्थ था | दो लोग और बैठे थे | अब दोनों ने हमारी और देखा जैसे शेर के माल पर कोई और बैठा हो | दोनों ने घूर के देखा कहा की ये हमारी सीट है | हमने कहा ठीक है सामान नीचे रख दे सीट के नीचे , सुनील जी ने शालीनता से दोनों के बैग सीट के नीचे रख दिए | पर दोनों की साँसे फूली हुई थी उधर सॉरी मांगने पर और आंटी जी के द्वारा उनको डांटने के बाद शायद अब उनकी नज़र हम पर थी | वो चाहते थे हम उठ जाये | उन्होंने ऐसा कहा मैंने कहा की दस बजे तक ये सबकी होती है सर | इसके बाद सिर्फ आपकी हो जाएगी | अब वो पत्नी के सामने दूसरी बार गलती मानने के लिए तैयार नहीं थे थोड़ी तेज़ आवाज़ में बोले | मैं भी पहली बार सफ़र नहीं कर रहा हूँ | अब मैंने हाथ जोड़े अंकल जी गलती हो गई है आप हमारे बुजुर्ग है | आपकी समस्या मैं समझ सकता हूँ आइये बैठिये पानी पीजिये | सांस ले ले लीजिये | अब उन्होंने पत्नी की तरफ देखा , पत्नी ने जैसे उनको सराहते हुए बैठने का इशारा किया | अब दोनों बैठ गए | सामान्य होते ही |

 और भी यात्री आ गए | सभी सामान नीचे रखने के लिए जगह सेट कर रहे थे | सामने वाली सवारी एक और दम्पत्ति थी | दोनों साइड में बैठे थे | पति की सीट कन्फर्म हो गई थे पर पत्नी की सीट RAC थी | एक सवारी और भी ऐसी ही थी | दोनों एक ही सीट पर आधी आधी पर बैठ थे | उनके दो बच्चे भी थे | एक शायद दस वर्ष का और दूसरा 5 वर्ष का था | दोनों पुत्र थे | पर दोनों ही चंचल थे | दोनों बेफिक्र अपनी शरारतो से सबका ध्यान अपनी तरफ कर रहे थे | अब उस सीट पे वो दोनों बच्चे , महिला , और दूसरा यात्री , मुश्किल से शेयर कर रहे थे | दोनों इंतज़ार कर रहे थे की टिकेट चेकर कोई सीट दे दे |

अब रात होती जा रही थी | चाय और स्नैक्स आ गए थे |
बुजुर्ग ने कहा एक सुगर फ्री भी देना | मैं भी फीकी चाय लेता हूँ मैंने देखा सुगर फ्री भी है मैंने कहा मुझे भी देना | अब सब सामान्य हो चला था | सुनील  जी ने काफी बोला | थोडा उनमे सब्र जल्दी टूट जाता है | फिर उन्होंने कहा काफी ले आना | पर जल्दी ही वो दूसरी अपनी बातो पे लग गए |सबको जोड़ लेते है अपनी बातो में ये गुण है | मैंने देखा सभी उनसे बात करने लग गए | मैं इस जुगाड़ में की साइड की ऊपर की जगह पर महिला का पति बैठा था पर वो वहा सेट नहीं हो पा रहा था | मैं थोडा रात को बैठ कर भी सो जाता हूँ | बीच के बिर्थ पर इतनी जगह नहीं होती की बैठ पाए | तो मैंने उनसे कहा की साइड की सीट कम लम्बी है आप छः फुट के है | आप मुझसे एक्सचेंज कर ले | उसको जैसे ख़ुशी मिली | वो तैयार हो गया |

अब वो नीचे आ गया और मैं ऊपर सीट पे सेट हो गया | पर महिला कुछ और सोच में थी उसने अपने दोनों पुत्र ऊपर बैठा दिये औऱ कहा कि अंकल को तंग मत करना और उनका पिता इन सबसे मस्त मोबाइल पर लगा था। अब मेरे पास एक कोना बचा था बैठने के लिये। पैर सिकोड़ रखे थे। पर बालक किसी के सिखाये मने है क्या। छोटा वाला कुछ देर में ही उतर गया । मैंने थोड़े अपने पैर निकाले। अब वो बालक भी थोड़ी देर में उतर गया और मैंने तुरंत कंबल निकाला और पैर पूरे फैला लिये। यहाँ मैं कुछ मतलबी सा हो गया था।

तभी खाना आ गया था। मुझे भूख नही थी। तो मैंने सिर्फ दाल और चावल रख कर पनीर और रोटी वापस कर दी। पर बाद में अफसोस हुआ कि दम्पत्ति को दे देता वो चार थे। और उनको दो ही भोजन आये थे। तो पिता तो मस्त पूरी प्लेट खा गया। पर माता ने अपना भोजन उन दो बच्चो को खिला दिया। इसका मतलब वो भूखी रह गई। पर मैंने सोचा कि मैं देता भी तो वो लेती या पता नही नही लेती।

अब अंत मे 10 बजे रेलवे वाले आइस क्रीम देते है। वो मैने सुनील  जी को कहा आप को दे दूँगा।
अब आइस क्रीम आई और मैंने ले ली। अब मैंने सोचा दो तो बच्चे है। इनको भी 2 ही आई होंगी। पिता ने तो झटपट खोली और खाने लगा। तो वो महिला जैसे ही खड़ी होकर बिस्तर सा ठीक करने लगी और मुड़ी तो मैंने अपनी वाली आइस क्रीम उसकी और बढ़ा दी। कि मैं नही खाऊंगा। इसे बच्चे को दे दे। वो मना करने लगी कि इनका पहले ही गला खराब है। पर उसके हाथ बढ़ते गये। शायद माँ की ममता हावी हो रही थी। और उसने जल्द उसको अपने बालक को दे दी। अब उनमे झगड़ा खत्म हो गया था।

अब सोने की समस्या थी। सुनील जी ने कहा कि एक बालक तो मेरे साथ सो सकता है आप चाहे। सभी उस परिवार से प्यार दिखा रहे थे। तो उनके साथ बैठी सवारी ने दोनों सीट के बीच अपनी चादर बिछाई और नीचे ही सो गया। अब सुनील जी ने मेरी और देखा , आइस क्रीम कहा है। मैंने कहा कि बच्चो को दे दी। उन्होंने कहा ठीक है। और हम सो गए।

सुबह उठे 5 बज गए थे। गुड़गावा आ चुका था। मैंने पानी पिया और फ्रेश होने चला गया। 6 बज गए थे। सुबह की चाय और बिस्कुट आ गए थे। मैंने ले लिए थे। वो बुजर्ग सज्जन भी उठ गए थे। मैंने सुनील जी को कई आवाज़े दी।। वो गहरी नींद में थे। असल मे उनको चाय का बहुत शौक है। हर आधे घंटे में उन्हें चाय चाहिये थी। कल पूरे दिन मेरे साथ सफर में थे करीब 15 चाय ले चुके थे। और गुजरात मे तो कप भी बहुत छोटा मिलता है। तो वो एक साथ दो लेते थे।अहमदाबाद उतरने पर स्टेशन पर पकोड़ियां गरम गरम तली जा रही थी। हमे भूख भी लगी थी तो हमने वो ले ली थी। उसे वहां भजिया कहते है । एक बार मे वो 5 देते है। हमने 4 बार ली। और चाय भी 4 बार। तब वो भी सन्तुष्ट हुये और मैं भी। बिल करीब 130 रुपये का बना वो देने के बाद हम इस ट्रेन में बैठे थे। मैं आवाज़ दे रहा था वो उठ नही रहे थे। तब मैंने उन बुजुर्ग को कहा कि इन्हें हिला कर उठाये।उन्होंने आराम से थपकी देकर आवाज़ दी । कोई प्रतिक्रिया नही आई। मैंने कहा कि इन्हें जोर से हिलाये। उन्होंने कहा कि बुरा मान जाएंगे। मैंने कहा नही मानेंगे आप कहे कि चाय पियेंगे क्या। उन्होंने जोर जोर से हिलाया और यही बोला। चाय शब्द कान में पड़ते ही वो उठ कर बैठ गये। और चाय की केतली ले ली।असल मे गर्म पानी मिलता है और चाय का मटेरियल भी। उन्होंने फिर पूछा कि दी कप पानी है न। उसने कहा हाँ जी। सुनील जी फ्रेश होकर आये। फिर कहा कि मुझे काफी ले आओ। अब वो प्रसन्न थे।

दोनों बुजुर्ग दम्पत्ति उनको अपना निवास बता रहे थे। अब वो सभी घुल मिल गए थे। नई दिल्ली आ चुका था। हमने उस बुजुर्ग दम्पत्ति की प्रणाम कहा और बाहर आ गए। अपने रोज़ मर्रा की  भागदौड़ की और।

मनोज शर्मा "मन"
101,प्रताप खंड, विश्वकर्मा नगर,
दिल्ली 110095
मोब न. 9871599113

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