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दीवार पर चढ़ा मेंढक नेमिषारण्य में

" दीवार पर सीधा चढ़ा मेंढक नेमिषाराण्य यात्रा की एक रात "





रात बहुत हो चुकी थी अब हम नेमिषारण्ये के एक सरकारी गेस्ट हाउस में आ गए थे | हम अपने कमरे में आ गए थे | अपने बैग रखकर मैं फ्रेश होने बाथरूम में आया | फ्रेश होकर जैसे मैंने पीछे फ़्लैश वाले बटन पर हाथ लगाया तो देखा मात्र छह इंच दूर छिपकली वहा थी | एक दम सुरसुरी सी हुई | हाथ एक दम से हट गया | मैंने आवाज़ से सी सी कहा वो दोड़ गई | फिर मैंने साबुन से हाथ धोये | और दरवाजे की चटखनी जो ऊपर की और थी जैसे ही हाथ लगाया वो छिपकली वहा थी फिर छह इंच उस चटखनी से ऊपर थी , फिर सुरसुरी सी हुई , देखकर मैंने फिर दरवाजा खटखटाया , अब वो दीवार पर और दरवाजे के कौने पर आ गई , मैंने चटखनी नीचे की , देखा की अगर दरवाजा पूरा खोलता हूँ तो ये छिपकली दीवार और दरवाजे के बीच में आ जाएगी और मर जाएगी | मैंने थोडा खोल कर देखा की क्या मैं निकल सकता हूँ | नहीं फिर मैंने सुर सुर करा कर दरवाजा थपथपाया , पर वो मुझे बाई आँख से ऐसे देख रही थी जैसे मैंने उसकी जगह पर कब्जा कर लिया था | और उसने मुझे दो ही आप्शन दिए थे या तो मैं चुपचाप अन्दर बैठा रहू या उसकी मृत्यु कर दू  |

 मैं थोड़ी देर अन्दर बैठ गया और सोचने लगा | अन्दर कोई ऐसी भी चीज नहीं थी जिससे मैं उसे भगा सकू फिर मुझे ध्यान आया की मैं चप्पल पहना हूँ , अब मैंने चप्पल से उसकी तरफ दरवाजे पर थप ठप की आवाज की , वो ऊपर चड़ गई | पर ऐसी स्थिति में कि मैं बाहर निकलू और वो मेरे ऊपर गिर जाये | मैंने तेजी से दरवाजा खोला और बाहर निकल गया | बाद में मैंने देखा तो वो ऊपर कोने में एक जगह रात भर चिपकी रही और मेरी गतिविधियों पर नज़र रखती रही | मैंने सोचा शायद ये मुक्ति चाहती है पर मैं इस पाप को क्यों लू |शायद नेमिषारण्ये की भूमि पर होने से ये आध्यात्मिक विचार मेरे मन में आ रहे थे | और मैं अपने बिस्तर पर जाकर सो गया |

 अगले दिन हमें जल्दी निकलना था उन्नाव की और साहित्यकारों की जन्मस्थली की और ....

आज भी रोज़ की तरह प्रातः साड़े पांच बजे हम उठ गए | देवेंदर जी जो बुलंदशहर से है पेशे से वकील है और कवि भी है | मैंने उन्हें उठाया और कहा की आप पहले फ्रेश हो ले हमें सात बजे निकलना है |

वो स्नान कर के आये तो हतप्रभ थे | कहने लगे जैसे ही मैं नहाने लगा तो एक मेंढक सामने आ गया और मैंने पहली बार मेंढक को सीधा दीवार  पर चढ़ते देखा है , वो स्नान करते हुए घबरा गए थे वो फिर कहने लगे की रात को मैंने एक छिपकली भी देखी थी , वो कहने लगे की वो सोच रहे थे की कही वो उनके बिस्तर पर न गिर जाए | काफी भगाने की कोशिस की पर वो भागी नहीं , डरती नहीं है यहाँ की छिपकलिया | मैंने उन्हें रात वाली छिपकली की घटना सुनाई , फिर मैंने कहा की ये नेमिषारण्ये है हो सकता है ये ऋषि मुनि हो | तभी ये मानव से डर नहीं रहे है , फिर मुझे वो स्नानघर में ले गए और एक डंडे से पाइप के पीछे दुबके मेंढक को जमीन पर गिराया वो फिर मेरे सामने दीवार पर चढ़ता हुआ पाइप के पीछे हो लिया | अब मेरा न. स्नान का था मैंने दरवाजे की चटखनी नहीं लगाईं थी और स्नान किया डरते डरते की कोई घटना न हो जाये | फिर हम तैयार होकर बाहर आ गए अगली यात्रा के पड़ाव की और |

मनोज शर्मा "मन"

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