राजनीतिक पार्टियां परिवारों तक ही सीमित
कांग्रेस में पहले तय होता है कि ये पैसे वाला है इसने पैसे दिये है मंच पर बैठेगा। और सामने वाले ब्रेड छोले राजमा कब मिलेंगे इसके लिये सामने से विक्की भाई जिंदाबाद के नारे लगाते रहते है। बस यही से उनकी गुलामी वाली आदत शुरू हो जाती है। हमारे संगठनों में बीस बीस रुपये देकर सभी जलपान करते है तो किसी भी कार्यकर्ता को मंच पर बैठाया जा सकता है। तो सभी का स्वाभिमान बरकरार रहता है। और वो वंदे मातरम और भारत माँ की जयकार के नारे लगाते है। जब कांग्रेस टाइप के लोग हमारे संगठन से जुड़ते है तो उन्हें समझ ही नही आता कि यहां पावर का सेंटर किसके हाथ है। सब कुछ चल रहा होता है। और किसी मे श्रेय लेने की होड़ नही होती। और न ही जिंदाबाद कहने की। इसी में एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन जाता है। ऐसे ही हर पार्टी में एक परिवार का वर्चस्व रहता है दिखता भी है कि एक अध्यक्ष भाई अपनी बहन को महासचिव बनाता है तो सभी खुशी मनाते है। ऐसे ही जब वाजपेयी जी बने तो उन्होंने सोचा इसके बाद bjp समाप्त, अब मोदी जी बने है तो वो सोच रहे किसी तरह मोदी जी को हटाओ फिर bjp समाप्त, अरे यहां ऐसा नही है । इस संगठन में निरंतर निर्माण प्रक्रिया चलती रहती है। अपने सामने ही व्यक्ति अपनी दूसरी और तीसरी पंक्ति तैयार कर देता है और खुद खुशी से अलग हो जाता है। वो नही समझ सकते जिन्होंने एक परिवार के लिये कुर्सी लगाना ही उसे अंतिम माना है। अगर आपको यकीन न हो तो हमारे संगठन को जॉइन करो। अपने आप व्यक्ति की न होकर भारत माँ की जय, वंदे मातरम निकलने लगेगा।
मनोज शर्मा "मन"
कांग्रेस में पहले तय होता है कि ये पैसे वाला है इसने पैसे दिये है मंच पर बैठेगा। और सामने वाले ब्रेड छोले राजमा कब मिलेंगे इसके लिये सामने से विक्की भाई जिंदाबाद के नारे लगाते रहते है। बस यही से उनकी गुलामी वाली आदत शुरू हो जाती है। हमारे संगठनों में बीस बीस रुपये देकर सभी जलपान करते है तो किसी भी कार्यकर्ता को मंच पर बैठाया जा सकता है। तो सभी का स्वाभिमान बरकरार रहता है। और वो वंदे मातरम और भारत माँ की जयकार के नारे लगाते है। जब कांग्रेस टाइप के लोग हमारे संगठन से जुड़ते है तो उन्हें समझ ही नही आता कि यहां पावर का सेंटर किसके हाथ है। सब कुछ चल रहा होता है। और किसी मे श्रेय लेने की होड़ नही होती। और न ही जिंदाबाद कहने की। इसी में एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन जाता है। ऐसे ही हर पार्टी में एक परिवार का वर्चस्व रहता है दिखता भी है कि एक अध्यक्ष भाई अपनी बहन को महासचिव बनाता है तो सभी खुशी मनाते है। ऐसे ही जब वाजपेयी जी बने तो उन्होंने सोचा इसके बाद bjp समाप्त, अब मोदी जी बने है तो वो सोच रहे किसी तरह मोदी जी को हटाओ फिर bjp समाप्त, अरे यहां ऐसा नही है । इस संगठन में निरंतर निर्माण प्रक्रिया चलती रहती है। अपने सामने ही व्यक्ति अपनी दूसरी और तीसरी पंक्ति तैयार कर देता है और खुद खुशी से अलग हो जाता है। वो नही समझ सकते जिन्होंने एक परिवार के लिये कुर्सी लगाना ही उसे अंतिम माना है। अगर आपको यकीन न हो तो हमारे संगठन को जॉइन करो। अपने आप व्यक्ति की न होकर भारत माँ की जय, वंदे मातरम निकलने लगेगा।
मनोज शर्मा "मन"
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