है तो मेरा दोस्त”
गुमान में रहता है ,
अभिमान में रहता है |
ध्यान देना जब से बंद किया उस पर |
तो परेशान सा रहता है ||
मिलता था तो घंटो बाते किया करता था |
अब मिलता है तो खुद का ही बखान करता है |
जब चाहे बाते करने बंद कर देता है |
कभी फिर से हंस के गले मिल जाता है ||
अक्सर मुझसे कब क्या क्या बोल जाता है |
और अक्सर मुझसे नाराज़ भी हो जाता है ||
बीमार हो जाता हूँ तो हाल चाल भी पूछ जाता है |
ठीक ठाक हूँ तो कभी कभी मिलने भी नहीं आता है ||
जो भी बात करू उसका उल्टा ही जवाब देता है |
न बात करू तो खुद ही सवाल कर जाता है ||
उम्र के इस पढाव में अब मैंने भी
कुछ प्रतिक्रिया देना छोड़ दिया है ||
अब मैंने भी उसको उसके ही हालात
पर ऐसे ही छोड़ दिया है बेरूखी में ||
अब शायद उसको मुझसे ज्यादा
कोई चाहने वाला मिल गया है |
पर जहा भी रहे जैसे भी रहे |
खुशहाल रहे सुखी रहे जैसा भी है ||
है तो मेरा दोस्त
मनोज शर्मा "मन"
101, प्रताप खंड, विश्व कर्मा नगर,
दिल्ली 110095
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